किसान ऋण का मायाजाल
Hello friends,
"जय जवान - जय किसान" लाल बहादुर शास्त्री जी का यह प्रसिद्ध नारा, शायद आपको याद होगा पर यह नारा आज किसानों के बीच से ओझल होने की कगार पर है। आज की समय में "जय किसान " की जगह "हाय किसान " ने अपनी जगह ले ली है। क्योंकि आज सभी किसान ऋण के मायाजाल में फंसते जा रहे हैं, भारत में आज ऐसा कोई भी किसान नहीं हैं,जो कर्ज़ तले दबा न हो ? मैं अपने इस लेख में किसानों की दयनीय मनोदशा व उनकी सामाजिक तथा आर्थिक स्थितियों का विश्लेषण करते हुए अपने विचार आप लोगों के समक्ष पेश कर रहा हूं। आशा करता हूं कि आपको मेरा यह लेख भी पहले की लेख की तरह ही पसन्द आयेगा।
जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यहां की अधिकांशत: 70% लोग कृषि पर ही निर्भर रहते हैं। परंतु आज किसान कृषि को छोड़कर मजदूरी की तलाश में शहरों की ओर अग्रसर हो रहे हैं। जिस रेशियो में जनसंख्या की आबादी दिनों दिन बढ़ती जा रही है इसके साथ ही महंगाई की दर भी उसी रेशियो से बढ़ती जा रही है । भूमि सीमित है, और अनाज की पूर्ति असीमित । कृषि को छोड़ने का किसानों के पास ऐसे बहुत से कारण है जिसे हम इस लेख में किसानों की छुपी कुछ समस्याओं का उल्लेख करेंगे, और इसके साथ ही उनकी समस्याओं के समाधान के निराकर करने हेतु अपने विचार व्यक्त करेंगे ।
आज के समय में किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय है, जो किसान कड़ी धूप में मेहनत कर पूरे भारत की जनसंख्या को खाने योग्य अनाज उपलब्ध कराता है, आज वही किसान अनाज के दाने-दाने के मोहताज हो जा रहे हैं। अगर भविष्य में ऐसे ही स्थिति रही तो, किसान खेती करना छोड़ देगा और वह मजदूरी की तलाश में शहरों की ओर पलायन करेगा।
रामू आज बड़ा खुश था,क्योंकि उसे आज किसान क्रेडिट कार्ड (K.C.C.) के जरिए आज उसे लोन मिलना था। वह मन ही मन यह सोच रहा था कि, लोन के अमांउट मिलने के बाद, वह कृषि कार्य में और भी ज्यादा मेहनत करेगा ।और साथ ही साथ वह अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए महंगे से महंगे स्कूलों में उनका दाखिला कराएगा। यह सभी बातें सोचकर वह बैंक पहुंचा। और वह बैंक के मैनेजर से लोन के विषय में उनसे बात की। बैंक मैनेजर ने रामू को यह बताते हुए बोला कि-रामू भाई ! आपका लोन तो आपको मिल जाएगा परंतु मेरे को आप क्या दोगे आपका यह काम कर दूंगा तो ??? यह बात सुनकर रामू ने बोला-साहब मोय गरीब आदमी हो। मोए तोके का दे सको ??? फिर बैंक मैनेजर ने रामू को अपनी बातों के जाल में फंसते हुए बोला-जो तेरा लोन का पैसा 25000 आया है उसमें से मुझे हजार रूपए दोगे। तभी मैं तेरे को लोन दूंगा। वरना तुम्हें कभी भी लोन नहीं मिलेगा।
कुछ देर सोचने के बाद रामू ने उसे पैसा देने के लिए राजी हो गया। फिर रामू ने अपने लोन के अमाउंट -24000/ 🏦 बैंक से लिए और फिर घर की ओर वापिस चल पड़ा। इस साल रामू ने खेती के लिए जी जान से लगातार मेहनत किया।खेती करने के कुछ दिनों बाद रामू बारिश ना होने के कारण चिंतित रहने लगा। और वह सोचने लगा कि, इस बार अगर बारिश समय पर ना हुई तो मेरी सारी फसल बर्बाद हो जाएगी। 2 दिन के बाद बारिश होना शुरू हुई,बारिश को देखकर सभी किसानों में खुशी का ठिकाना ना रहा। पर ये खुशी बस कुछ दिन की थी। दो हफ्तों की लगातार बारिश होने के कारण किसानों के सभी फसल बर्बाद हो गए। सभी किसान दिल में दर्द लिए खामोशी की आगोश में समा गए।उनके मन में बहुत ज्यादा प्रश्न उठ रहे थे, जिनका उनके पास कोई जवाब नहीं था -
1. अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेगा ?
2. बच्चों की स्कूल 🏫 फीस कैसे भरेगा ?
3. बैंक से लिए लोन से वो कैसे छूटेगा ?
4. अपने निजी जरूरतों की पूर्ति कैसे करेगा ?
5. अब उनकी सहायता कौन करेगा ?
अब किसानों के पास सिर्फ दो ही रास्ते हैं, एक वो लोग सेठ साहूकार से फिर से कर्ज ले या नाममात्र की मजदूरी करें। नाम मात्र की मजदूरी से तात्पर्य उस मजदूरी से है जिसमें उनकी वास्तविक मजदूरी में से महंगाई की दर को घटा दिया जाए तो उनकी नाम मात्र की मजदूरी निकल जाएगी।
वास्तविक मजदूरी - महंगाई की दर=नाममात्र की मजदूरी
5 साल बाद नई सरकार के आने, पर सरकार द्वारा किसानों का ऋण माफ करने का ऐलान किया जाता है। यह बात सुनकर सभी भोले-भाले किसानों में खुशी की लहर दौड़ जाती है। जब ये बात रामू के कान तक पहुंची तो वह खुशी से झूम उठा। और वह दूसरे दिन बैंक की ओर चल पड़ा, वहां जाकर उसे पता चला कि सरकार ने किसानों का सिर्फ ऋण तो माफ कर दिया है पर उस ऋण पर लगने वाला ब्याज की दर को माफ़ नही किए हैं।रामू के लिए हुए ऋण पर लगने वाला ब्याज की दर ₹12530/ पहुंच गई थी। और यह ब्याज की दर दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। यह सब जानकर रामू दुखी मन से घर की ओर लौटने लगा। और वह सोचने लगा, उसने जो सेठ साहूकार से लिया था पैसा, उसे वह चुकाएगा कैसे ?? और बैंकों के कर्ज पर लगने वाला ब्याज की दर को देगा कैसे?? सभी किसान एक कर्ज को चुकाने के लिए दूसरा कर्ज लेते हैं जिसका फल, यह होता है कि सभी किसान कर्ज के माया जाल में फंसते जाते हैं । और उनके जमीन, जायदाद व घर को सेठ साहूकार- महाजन द्वारा हड़प लिया जाता है, अब किसानों के पास आत्महत्या करने के अलावा और कुछ बचा ही नहीं है ???
सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिससे हमारे किसानों को फायदा हो सके। हमारे भोले भाले किसानों से ₹5 की सब्जी लेकर बाजार तक पहुंचते-पहुंचते उस सब्जी की रेट ₹50 हो जाती है। जिस वजह से किसानों को बाजार का सही मूल्य नहीं मिल पाता है।किसानों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनके समाधान हेतु कुछ सुझाव-
1. किसानों को उनकी फसल का बाजार मूल्य देना।
2. खेती हेतु उन्नत बीज की उपलब्धता।
3. आधुनिक तकनीकी जैसे ट्रैक्टर, थ्रेसर, मोटर पंप इत्यादि साधन की उपलब्धता।
4. कम ब्याज दर पर ऋण देना।
5. खेती कार्यों के नए विषय में किसानों को अवगत कराना।
6. किसानों को खेती कार्य हेतु प्रोत्साहित करना।
7. किसानों के अनाज का भुगतान डायरेक्ट उनके खाते में करना।
8. किसानों को बाजारों तक सुविधाजनक वाहन मुहिया कराना।
9. किसानों के लिए अनाज रखने हेतु गोदामों का निर्माण कराना।
10. किसानों की हित की रक्षा हेतु उनको संरक्षण प्रदान करना।
लेखक की कलम से,
किसान हमारे देश की शान हैं, किसानों के कठोर परिश्रम द्वारा ही हमारे थाली तक अनाज पहुंच पाता है। अनाज के थोड़े से हिस्से कमाने के लिए वो इतना मेहनत करता है कि वह अपना दुख - दर्द बयां नहीं कर पाता है। किसान अपने एक ऋण के छुटकारा के लिए दूसरा ऋण ले लेता है। इससे वह ऋण के माया जाल में फंसते हुए चले जाता है। इस लेख के जरिए आज मैं हमारे देश के सभी किसानों की समस्याओं को उजागर करने की एक कोशिश की है। अगर इस विषय में आपकी कोई राय हो तो मुझे कमेंट बॉक्स में बताए। और लास्ट में मै सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा, अगर आपको मेरा लेख पसंद आया हो तो प्लीज सब्सक्राइब एंड शेयर कीजिए जिससे आपको मेरे नए लेख की नोटिफिकेशन आपको मिल जाएगी।
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