Wednesday, April 15, 2020

दहेज़ प्रथा एक मानसिक रोग

                         दहेज़ प्रथा एक मानसिक रोग


      दहेज, एक छोटा सा शब्द है, यकीन नही होता, ये शब्द न जाने कितनों का घर तोड़ा होगा। दहेज को सरल शब्दों में कहा जाए तो दहेज, एक तरह की मांग होती है जो विवाह के समय वधु के परिवार द्वारा, वर पक्ष को दिया जाता है। चाहे वो नगद के रूप में हो या वस्तुओं के रूप में। सरकार द्वारा दहेज प्रथा के रोकथाम हेतु बहुत से कानूनी प्रावधान है। परंतु आज भी दहेज प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त किया नहीं जा सका है।आज भी विवाहों में दहेज लेने व देने का रिवाज कायम है। जिसका असर आए दिन घटनाओं के रूप में सामने आ रहे हैं।


      दहेज प्रथा का इतिहास-


      भारत के प्राचीन वेद शास्त्रों के चार वेदों में से प्रथम ऋग्वेद के अनुसार -विवाह के समय, यदि कन्या को  कोई उपहार नहीं दिया जाता था तो कन्यादान अपूर्ण माना जाता था।और यहां तक कि कन्यादान एवं वरदक्षिणा एक दूसरे से जुड़े हुए माने जाते थे। वर दक्षिणा के रूप में कन्या के माता-पिता द्वारा वर को स्वेच्छा पूर्ण उपहार दिया जाता था। तथा बाद में दहेज धनवानों व बड़े व्यापारियों द्वारा संपत्ति के कुछ अंश दहेज के रूप में वर के परिवार वालों को दिया जाता था। पर आज के समय में दहेज एक विशालकाय व्यापार  के रूप में तब्दील हो गया है। जिसकी पूर्ति असीमित है।


       आज भारत में हर साल लाखों की संख्या में दहेज से संबंधित घटनाएं सामने आ रहे हैं। जिसमें हमारी कोई बेटी दहेज प्रताड़ना के चलते खुद को आग के हवाले कर देती है तो कोई बहन, फांसी को अपने गले से लगा कर आत्महत्या की कोशिश करती है। सरकार द्वारा पूरे देश को बदलने की एक रूपरेखा बनाने में जुटी है पर आज यहां हमारी बहन - बेटी को बचाने हेतु कानूनी प्रावधान होने के बावजूद, ऐसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं।आज भी एक पिता अपनी बेटी की शादी के लिए उतनी चिन्ता नहीं करता जितना कि दहेज देने की चिन्ता में हर पल डूबा रहता है। आज भारत में हर 100 घरों में से 25 घरों में हमारी बहन बेटी दहेज संबंधी प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं। जिसमें कुछ घटनाएं सामने आती है तो बहुत सारी दहेज संबंधी घटनाएं भ्रष्ट नेताओं व उच्च पदाधिकारियों की मिलीभगत द्वारा दबा दी जाती हैं। शायद यही वजह है कि, कुछ दहेज संबंधी घटनाएं थाने में दर्ज नहीं किया जाता। फिर बाद में उसे आपसी समझौता बता कर हमेशा के लिए उस मामले को close कर दिया जाता है।


        किसी ने क्या खूब लिखा है-

                "दहेज कोई  प्रथा नहीं है,बल्कि भीख मांगने का                      सामाजिक तरीका है ..बस फर्क सिर्फ इतना है।                   देने वाले की गर्दन झुकी है, पर                 

                   लेने वालों की अकड़ बढ़ी है"।

                   
       आजकल दहेज लोभियों के भी तरह-तरह के नखरे हैं, उन्हें अपने बेटे के लिए बहू नहीं, पैसे छापने की मशीन चाहिए। जिसे वो लोग जब चाहे तकलीफ पहुंचा कर उनके परिवार जनों से कीमती सामान, नगद राशि व गाड़ियां अपने घरों में खड़ी  कर सकें। और कहीं कहीं तो ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि  एक तराजू में एक तरफ सोने चांदी, रुपयों पैसों को रखा जाता है और दूसरी तरफ हमारी बहन बेटी को। मेरी यह बातें आपको कड़वी जरूर लगेगी, पर यह सच है। और कुछ मामले ऐसे भी आए हैं जिसमें वर पक्ष द्वारा अपने बेटे की पढ़ाई से लेकर नौकरी तक के खर्चे का भुगतान कन्या पक्ष द्वारा वसूल लिया जाता है। दहेज प्रथा एक मानसिक रोग है, जो समय के साथ पल पल बढ़ता ही जाता है। 


                    "जितना बड़ा रोग उतना ही बड़ा लोभ"


      दहेज प्रथा में अगर ऐसा होता कि कन्या पक्ष के परिवारों द्वारा, वर पक्ष के परिवारों को दहेज के नाम पर कन्या के अलावा कुछ भी देना नहीं पड़ता,बल्कि दहेज,वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष के परिवारों को मिलता तो सोचिए! कितना अच्छा होता। कम से कम हमारी बहन बेटी को तो प्रताड़ना का शिकार तो नहीं होना पड़ता ???
     -अगर आप सहमत हो तो प्लीज कमेंट बॉक्स में अपना मत दे।

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लेखक के कलम से,
                            आज मैं अपने इस लेख के माध्यम से आपको देश में हो रही दहेज प्रथा जो विलुप्त रूप से आज भी हमारे घर परिवारों में अपने पैर पसारे हुए हैं। उसके खिलाफ अंत करने की मेरी एक कोशिश है। जिससे दहेज प्रथा जैसे सामाजिक बुराई को खत्म किया जा सके। इस लेख के अंत में, मै सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि  अगर आपको मेरी यह लेख पसन्द आयी हो तो इसे इतना शेयर करो कि हमारे देश के सभी बहन बेटी तक दहेज के खिलाफ लड़ने का आत्मविश्वास जाग सके।और अगर आप मेरे इस ब्लॉग में नए हैं तो प्लीज इसे सब्सक्राइब करें, जिससे आपको मेरे नए पोस्ट की नोटिफिकेशन आप तक पहुंच जाएगी।

                 Thank you.....
   

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